अशोक जी की बहुरंगी कविताओं का एक और संकलन है ‘ए जी सुनिए’। पुस्तक के आठ खंडों के आठ शीर्षक भी मिलकर एक कविता बनाते हैं- जीवन ताल में, जंजाल में, इसलिए मलाल में, अस्पताल में, सवाल में, तरंगोत्ताल में, आकाश पाताल में और विदाकाल में। इस संकलन के रेखाचित्र श्री चन्द्र बी. रसाली ने बनाए हैं जो मूलतः एक मूर्तिकार हैं। इसलिए चित्रों में त्रिआयामी जीवंतता है।
मंडी डबवाली (हरियाणा) में हुए अग्निकाण्ड पर ‘डबवाली शिशुओं के नाम’ कविता के माध्यम से कवि ने राष्ट्रीय भावना को पुष्ट करने का प्रयास किया है। शीर्षक-कविता ‘ए जी सुनिए’ में ‘सेल’ के प्रलोभनों की कलर्ई खोली है। ‘बग्गा’ पात्र के माध्यम से संसद व विधानसभा में आए दिन होने वाली उठा-पटक का चित्रण किया है, यथा— ‘अटैंशन! बिहेव योरसैल्फ! ध्यान रखिए, पूरा देश आपको देख रहा है।’
संग्रह में हिंदी के अलावा उर्दू, संस्कृ त, अंग्रेज़ी व अन्य शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग किया गया है। कुछ शब्दों को ज़रूरत के अनुसार तोड़ा-मरोड़ा भी गया है। लेकिन यह तोड़ना और मरोड़ना सहज लगता है चूंकि उन व्यक्तियों के संदर्भ में है जो देश को तोड़ और मरोड़ रहे हैं। शब्दों के साथ नए-नए खिलवाड़ करना और नए शब्द-रूपों को गढ़ना अशोक जी का ख़ास अंदाज़ है जो इस संकलन की अधिकांश कविताओं में मिलता है। ये कविताएं पाठकों को गुदगुदाएंगी और साथ ही कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी।