ज़िन्दगी दिल के आकार की किताब
(हर ज़िन्दगी के रूप अनेक हैं और हर रूप के आकार अनेक हैं।)
ज़िन्दगी एक किताब है,
आकार में दिल सी,
पवित्र इतनी कि गीता,
क़ुरान, बाइबिल सी।
एक विद्युत की चमक,
एक दमकती मंज़िल सी,
यों तो पहाड़,
पर महसूस करो तो तिल सी।
एक दूरी के बावजूद सबमें शामिल सी,
मीठी दुश्मनी सी, प्रेमी क़ातिल सी।
कभी बड़ी आसान, कभी मुश्किल सी,
कभी निपट अकेली,
कभी खिलखिलाती महफ़िल सी।
कभी दिल्ली की
झिलमिल कालौनी जैसी गंदी,
कभी गंदी कालौनी की झिलमिल सी।
कभी मधुमक्खी का छत्ता,
कभी चींटी के बिल सी,
कभी घटाओं जैसी कुटिल,
कभी गणित की तरह जटिल सी।
कहीं स्लेट जैसी साफ़,
कहीं टूटी पेंसिल सी,
कहीं सिग्नेचर्स के साथ अप्रूव्ड,
कहीं खुन्दक में कैंसिल सी।
कभी उंगली पकड़ाने वाली
कभी टक्कर में मुक़ाबिल सी।
और कहीं मुझ जैसी जाहिल
और आपके समान क़ाबिल सी।
पर मैं तो इतना चाहता हूं कि
ज़िन्दगी हल्की-फुल्की हो
न कि पत्थर की सिल-सी,
वो अगर बूढ़ी झुर्रियों में भी मिले
तो किसी बच्चे की इस्माइल सी।