वोट खोट की चोट से होता बंटाढार
(आज तीन कुंडलिया छंद हैं आपके लिए)
मम्मी से कहने लगा,
पप्पू हो लाचार,
तुमने मेरे टिफिन में
रक्खा नहीं अचार।
रक्खा नहीं अचार,
रोटियां दोनों रूखी
उतरी नहीं गले से
मेरे सब्ज़ी सूखी।
श्रीमान जी, मां की
आंखों में थी नम्मी
टिफिन चाट गई सुरसा
महंगाई की मम्मी।
ऐसे दिन कब आएंगे,
जाति न हो आधार,
वोट खोट की चोट से,
होता बंटाढार।
होता बंटाढार,
योग्यता का आदर हो,
ऊंची शिक्षा क्यों अब
भिक्षा की चादर हो?
श्रीमान जी, जिन्हें चाहिए
पद और पैसे,
वे सबको गुमराह
किया करते हैं ऐसे।
यमुना लाखों वर्ष से,
थी जीवन की डोर,
लहराती हरियालियां,
खुशहाली चहुं ओर।
खुशहाली चहुं ओर,
हो गई अब विध्वंसी,
मछली तक मर जांय,
मौन कान्हा की बंसी।
श्रीमान जी, कंसों ने
वो कचरा डाला,
यमुना मैया, तुझको
बना दिया यमुनाला।