(इस मुद्दे पर असंख्य लोगों ने असंख्य तरीक़े से सोचा होगा)
दुख क्या है?
सुख क्या है??
दुख को कह लो
बिना ब्रेक की
धुक-धुक करती गाड़ी है,
चालक जिसका
बालक जैसा
नादां और सिखाड़ी है।
गाड़ी है या नौका है?
अगर भंवर से बचे रहे तो
दुख में
सुख का मौका है।
ब्रेक से गाड़ी नहीं रुकेगी,
सुख की नदिया
कहां गिरेगी?
दुख बंगाल की खाड़ी है।
अब फिर सोचो—
गाड़ी है या खाड़ी है?
नासमझों को पड़े न अंतर
समझ गया सो अनाड़ी है।
दुख जैसे इक पगड़ी है,
जिसकी कसावट तगड़ी है।
ढीला करके झुको ज़रा,
ईगो बोले— ‘मरा मरा!’
राहत फ़ौरन आएगी,
हां, पगड़ी गिर जाएगी।
दुख जीवन का ताना है
उलझा ताना-बाना है
सुख क्या है?
उस उलझन को
मिल जुलकर सुलझाना है।