रात और दिन की आंख-मिचोली
(सारे खेल जीते-जी ही देखे जा सकते हैं)
मुस्कानों की मीठी यादें,
बहते आंसू की फ़रियादें।
प्यार मुहब्बत, हंसना रोना,
सज़ा मज़ा, पा जाना खोना।
महल दुमहले, बंगले कोठी,
चना-चबैना, सूखी रोटी।
क्या रोटी पर देसी घी है?
जो कुछ भी है
जीते जी है!!
झूले चर्खी, मेला ठेला,
झुमके ठुमके, कुश्ती खेला।
खेल-खिलौने, खील-बताशे,
जोकर के रंगीन तमाशे।
छीनाझपटी, मारामारी,
घोड़ा-तांगा, रेल सवारी।
क्या मन के माफ़िक तेज़ी है?
जो कुछ भी है
जीते जी है!!
गहने-ज़ेवर की संदूकें,
संदूकों में हैं बंदूकें।
बंदूकों में छर्रे-गोली,
गोली में है ख़ूं की होली।
होली खेलें बीच बजरिया,
सबकी उसने लिखी उमरिया।
क्या तुमको काफ़ी भेजी है?
जो कुछ भी है
जीते जी है!!
क़ुदरत के भरपूर नज़ारे,
प्यारे सूरज, चंदा, तारे।
रात और दिन की आंख-मिचोली,
सैंया, गलबहियां, हमजोली।
ख़ूब महकती थी फुलवारी,
लेकिन भैया, जान हमारी,
वक़्त से पहले क्यों ले ली है?
जो कुछ भी है
जीते जी है!!