कवित्त छंद के दो प्रयोग
(एक तो घर में नहीं अन्न के दाने ऊपर से मेहमान का अंदेशा)
रीतौ है कटोरा
थाल औंधौ परौ आंगन में
भाग में भगौना के भी
रीतौ रहिबौ लिखौ।
सिल रूठी बटना ते
चटनी न पीसै कोई
चार हात ओखली ते,
दूर मूसला दिखौ।
कोठे में कठउआ परौ
माकरी नै जालौ पुरौ
चूल्हे पै न पोता फिरौ,
बेजुबान सिसकौ।
कौने में बुहारी परी
बेझड़ी बुखारी परी
जैसे कोई भूत-जिन्न
आय घर में टिकौ।
कुड़की जमीन की
जे घुड़की अमीन की तौ
सालै सारी रात
दिन चैन नांय परिहै।
सुनियौं जी आज,
पर धैधका सौ खाय
हाय, हिय ये हमारौ
नैंकु धीर नांय धरिहै।
बार बार द्वार पै
निगाह जाय अकुलाय
देहरी पै आज वोई
पापी पांय धरिहै।
मानौ मत मानौ,
मन मानै नांय मेरौ, हाय
भोर ते ई कारौ कौआ
कांय-कांय करिहै।