इसलिए नहीं बताया कि तू डर जाय
(अपने सुदूर के लिए एक विचित्र सी कामना)
सारी ऊर्जाएं सारी क्षमताएं खोने पर,
यानी, बहुत बहुत बहुत बूढ़ा होने पर,
एक दिन चाहूंगा कि तू मर जाय!
इसलिए नहीं बताया कि तू डर जाय!!
उस दिन अपने हाथों से संस्कार करूंगा,
तुझ मरी हुई का सौंदर्य देखूंगा,
तेरे स्थाई मौन से सुनूंगा,
उसके ठीक एक महीने बाद मैं मरूंगा।
क़रीब, और क़रीब जाते हुए
पहले मस्तक और अंत में चरण चूमूंगा।
अपनी बुढ़िया की झुर्रियों के साथ-साथ
उसकी ख़ूबियां गिनूंगा उंगलियों से।
झुर्रियों से ज़्यादा ख़ूबियां होंगी
और फिर गिनते-गिनते गिनते-गिनते
उंगलियां कांपेंगी, अंगूठा थक जाएगा।
फिर मन-मन में गिनूंगा
पूरे महीने गिनता रहूंगा
बहुत कम सोऊंगा,
और छिपकर नहीं
सबके सामने आंसुओं से रोऊंगा।
एक महीना हालांकि ज़्यादा है
पर मरना चाहूंगा एक महीने ही बाद,
ताज़ा करूंगा तेरी एक-एक याद।
आस्तिक हो जाऊंगा एक महीने के लिए
बस तेरा नाम जपूंगा और ढोऊंगा
फ़ालतू जीवन का साक्षात् बोझ
हर पल तीसों रोज़।
इन तीस दिनों में काग़ज़ नहीं छूऊंगा
क़लम नहीं छूऊंगा अख़बार नहीं पढूंगा
संगीत नहीं सुनूंगा
बस अपने भीतर तुझी को गुंजाऊंगा,
और तीसवीं रात के गहन सन्नाटे में
खटाक से मर जाऊंगा।