गुर्गादास का उल्लू टेढ़ा
(चुनाव-सुधार का पहला चरण है पार्टियों द्वारा सही प्रत्याशी का चयन)
गुर्गादास, दिखे कुछ उदास-उदास।
श्रीमानजी बोले— कष्ट क्या है ज़ाहिर हो?
वे बोले— आजकल उल्लू टेढ़ा चल रहा है।
—लेकिन तुम तो उसे
सीधा करने में माहिर हो!
साफ़-साफ़ बताओ कि क्या चाहिए?
वे बोले— टिकट दिलवाइए।
—कहां का? दिल्ली का, मुंबई का,
या उज्जैन, उन्नाव का?
वे बोले— नहीं, नहीं, चुनाव का।!
—अभी तो तुम्हें एक पार्टी ने निकाला है,
अब दिल में किस पार्टी का उजाला है?
वे बोले— पार्टी से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता,
पड़ता है अंटी के पैसे और इलाक़े से।
श्रीमानजी ने पूछा— सो कैसे?
—वह सब छोड़िए पर चुनाव के अलावा
हमारे आगे कोई रास्ता नहीं है,
अपनी राजनीति का
नैतिकता से कोई वास्ता नहीं है।
एक व्यवसाय, जिसकी बेशुमार आय,
जीतने वाले के पौ-बारह
तो हारने वाला पौ-तेरह पाय!
मुद्दा कमल हल करे या साइकिल
लालटेन करे या लट्टू
घड़ी करे या झोंपड़ी
हाथी करे या हाथ का पंजा,
बस एक बार कस जाए शिकंजा।
श्रीमानजी बोले— गुर्गादास!
तुम जिस दल में जाओगे
उसका करोगे सत्यानास!!
हमारी शुभकामना है कि
माल खाते रहो हराम का,
टिकिट तो मिले पर स्वर्गधाम का।