दिन-रात की सलाई, सुख-दुख की बुनाई
(हर इंसान के बही-खाते में सुख और दुख का बड़ा फंदेदार हिसाब होता है)
सुख पर्वत की विशालता में नहीं
शायद एक कण में है,
सुख वर्षों की सुदीर्घता में नहीं
शायद एक क्षण में है।
दिन और रात की दो सलाइयों पर
सुख और दुख बुने जाते हैं करीने से।
बुनते वक्त लगते हैं
एक दूसरे से सीने से।
अनवरत चलती हैं
ज़िन्दगी की कलाइयां
सुलझनें उलझाती हैं
समय की सलाइयां।
सुख के सीधे फंदे से
दुख सोता है
सुख के उल्टे फंदे से
दुख जागे,
सुख और दुख दोनों हैं
जीवन की ऊन के दो धागे।
दुख की तकली से
सुख की कपास को
कातने बटने वाले
हम सब इंसान हैं,
सुख-दुख से बने स्वैटर
हमारी आत्मा के दिव्य परिधान हैं।
सुगम सुख से हुए घायल के लिए
दुख एक दुर्गम संगीत है,
सुख दुख का
और दुख सुख का मीत है।
सुख न मिलेगा तुम्हें सखे,
प्राप्त न होगा रखे रखे,
सुख का भोग न कर पाओगे
बिना दुखों का स्वाद चखे।