दिल की दुनिया जानी-पहचानी है।
(प्रेम जब प्रगाढ़ होता है तो प्रकृति के सारे उपादान आस-पास मंडराते हैं)
सागर से निकला
सीपी में पला,
आभा से भरपूर
रूप में ढला।
जैसे मोती है
वैसी ही
आभा
तेरे न्यारे नयनों में
होती है।
बगिया में उड़ता
गुन गुन करता,
फूलों पर मंडरा
पहरेदारी करता।
जैसे भवंरा है
वैसे ही
नयनों पर
तेरी दो भौहों का
पहरा है।
फैला चारों ओर
उड़ाता छोर,
छाया करता घनी
नाच मनमोर।
जैसे बादल है
वैसे ही
छाया करता
लहराता
तेरा आंचल है।
आर-पार दीखे
सारे जज़्बे जी के,
रंग देख जिसका
जीवन जीना सीखे।
जैसे पानी है
वैसे ही
तेरे दिल की
दुनिया
जानी पहचानी है।