चूहे ने क्या कहा
(छोटों की ताक़त का अंदाज़ा कुछ अनुभवी लोग ही लोग कर पाते हैं)
बुवाई के बाद खेत में
भुरभुरी सी रेत में,
बीज के ख़ाली कट्टों को समेटे,
बैठे हुए थे किसान बाप-बेटे।
चेहरों पर थी संतोष की शानदार रेखा,
तभी बेटे ने देखा—
एक मोटा सा चूहा बिल बना रहा था,
सूराख़ घुसने के क़ाबिल बना रहा था।
पंजों में ग़ज़ब की धार थी,
खुदाई की तेज़ रफ़्तार थी।
मिट्टी के कण जब मूंछों पर आते थे,
तो उसके पंजे झाड़कर नीचे गिराते थे।
किसान के बेटे ने मारा एक ढेला,
चूहे का बिगड़ गया खेला।
घुस गया आधे बने बिल में झपटकर,
मारने वाले को देखने लगा पलटकर।
गुम हो गई उसकी सिट्टी-पिट्टी,
ऊपर से मूंछों पर गिर गई मिट्टी।
जल्दी से पंजा उसने मूंछों पर मारा,
फिर बाप-बेटे को टुकुर-टुकुर निहारा।
ख़तरे में था उसका व्यक्तित्व समूचा,
इधर बेटे ने बाप से पूछा—
बापू! ये चूहा डर तो ज़रूर रहा है,
पर हमें इस तरह रौब से
क्यों घूर रहा है?
बाप बोला— बेटे! ये डरता नहीं है,
छोटे-मोटे ढेलों से मरता नहीं है।
हमारी निगाहें बेख़ौफ़ सह रहा है
ये हम से कह रहा है—
अब तुम लोग इस फसल से
पल्ला झाड़ लेना,
और खेत में
एक दाना भी हो जाय न
तो मेरी मूंछ उखाड़ लेना।