बाहर जगर मगर, अंदर अगर मगर
(मौहब्बत का तेल दिल के दिए में दीप्तिमान करते रहिए)
मिठाई की ख़रीदी
सुर्री पटाखे खील
सुनसान जेबें
और
दिवाली आ रही है।
बाहर जगर मगर
अंदर अगर मगर
म्लान दिल सुनकर
दिवाली आ रही है।
देखिए उलूक जी का
निष्ठुर सुलूक जी
जो जानकर अनजान
बनते हैं
दिवाली आ रही है।
ताज़ा तकाज़ा नज़र में भरपूर
जब आंखें मिलीं
ध्यान है खुर्राट लाला को
दिवाली आ रही है।
त्यौहार मनाना अगर
मजबूरी न होता
ऐलान न सुनते
दिवाली आ रही है।
बस मौहब्बत का तेल
दिल के दिए में
दीप्तिमान करते
कहकर
दिवाली आ रही है।
बहरहाल
श्री उल्लू के वास्ते
घर के प्रकोष्ठ में
ससम्मान ख़ाली है पार्किंग स्थान
दिवाली आ रही है।