बाई की चीख़ निकली भयानक
(इंसान की चीख के कारण कुछ और भी हो सकते हैं)
एक दिन दुर्गा बाई,
लाला की दुकान पर आई।
पीछे-पीछे प्रविष्ट हुए,
दो हट्टे-कट्टे बलिष्ठ मुए।
थोड़ी देर बाद अचानक,
दुर्गा बाई की
चीख़ निकली भयानक।
दुकान से भागे दोनों मुस्टंडे,
बाज़ार के लोग दौड़े लेकर के डंडे।
दबोच लिया दोनों बदमाशों को,
नाकाम कर दिया उनके प्रयासों को।
तलाशी में निकले पिस्तौल चाकू,
इसका मतलब कि दोनों थे डाकू।
पर इस समय तो पड़े थे
उनकी जान के लाले,
भीड़ ने कर दिया पुलिस के हवाले।
पुलिस ने भी कर दी जमकर धुनाई,
फिर दुर्गा से पूछा— बाई!
ये डाकू हैं कैसे पता चला?
कुशला बोली—
मैं क्या जानूं भला?
—क्या इन दोनों ने आपको डराया था?
—नहीं, इनमें से तो कोई
मेरे पास भी नहीं आया था?
—अरी ओ दुर्गा बाई,
फिर तू क्यों चिल्लाई?
तेरी आवाज़ तो बहुत तीखी थी!
—हां तीखी थी,
पर मैं तो लाला से
गेहूं का दाम सुनकर चीखी थी!