अस्ताचल को सूर्योदय बनाकर ही मानूंगा
(सुबह के विमान से अमरीका की ओर जाओ तो सूर्यदेव नखरा दिखाते हैं)
श्रीमानजी सुबह की फ़्लाइट से
जा रहे थे अमरीका,
खिड़की से सूर्योदय से पहले का
दृश्य दीखा।
क्षितिज के नीचे कालिमा,
ऊपर हल्की-हल्की लालिमा।
इंतज़ार करते रहे कि
सूर्य अब निकला
कि अब प्रकट हुआ,
लेकिन उन्हें विस्मय
विकट हुआ।
लालिमा बनी रही
लेकिन सूर्यदेव ऊपर नहीं आए,
सोच कर यह कि
वे जा रहे हैं
पूरब से पश्चिम की ओर
अनायास बड़बड़ाए—
भाग रहे हो
पश्चिम की ओर
भागो!
और तेज़ भागो!!
मैं सूर्योदय
तुम्हारा पीछा कर रहा हूं।
रुकूंगा नहीं
जब तक तुम नहीं रुकोगे,
उगूंगा नहीं
जब तक तुम नहीं अस्तोगे।
भागो
भागो कितना भागते हो
मैं भी पीछे-पीछे भागूंगा!
पश्चिम के अस्ताचल
मैं तुम्हें
पूरब का
सूर्योदय बनाकर ही मानूंगा।