अपना माखन सबको चुराने देना
(सुख चाहते हो तो तुम्हारा लोनी-मक्खन दूसरों के लिए है)
हरा नहीं सकते उसे
जिसे दुखों ने निखारा हो,
जिसके पास पिलाने को मीठा हो
पीने के लिए खारा हो।
दुख रूप बदल-बदल कर
परीक्षा लेते हैं,
हर बार नई दीक्षा देते हैं,
कि हम तो राई बराबर थे
तू पहाड़ समझ बैठा,
हम तो म्याऊं भी नहीं थे
तू दहाड़ समझ बैठा!
अगर तेरी खोपड़ी में
चिंतन की एक रई है,
और दिल में गाढ़ी भावनाओं की
ढेर सारी दही है,
तो चल वक़्त नहीं खोते हैं,
बिलबिलाने से अच्छा है
बिलोते हैं।
लोनी-लोनी मक्खन-मक्खन
दूसरों के लिए है,
छूंछ-छूंछ छाछ-छाछ
तेरे लिए है।
अपना मक्खन सबको चुराने देना,
जान भी जाए तो जाने देना!
दुख पहले तो तलवार भांजता है,
फिर कहते हैं कि
बरतनों की तरह मांजता है।
दुख दमकाता है,
अकेले तुझे ही नहीं
सबको चमकाता है।
ले! मेरे ये विचार अब तेरे हैं,
मेरे लिए नहीं हैं पगले
क्योंकि मुझ जैसे
पर-उपदेश-कुशल बहुतेरे हैं!