अभी पसीना मत सुखा अभी कहां आराम
(धरती रूपी इस ग्लोबल गांव में भारतीय औरत सबसे ज़्यादा काम करती है)
रैन गई ओ नवेली,
मत कर सोच विचार,
दिन निकला चल काम कर,
आंगन झाड़ बुहार।
भेज पराए गांव में
तुझे गए सब भूल,
करनी हैं अनुकूल सब
स्थितियां प्रतिकूल।
पानी लेने सब चलीं,
जा उन सबके साथ,
सानी कर पानी पिला,
बाहर गोबर पाथ।
यह चाकी यह ओखली,
देख न हो बेहाल,
बाद रसोई के तुझे,
जाना है तत्काल।
अभी पसीना मत सुखा,
अभी कहां आराम,
शाम ढले तक यहां भी,
करना होगा काम।
जितने भी पैसे मिले,
चल अब घर की ओर,
दिन की मेहनत ने दिया,
तन का सत्त निचोर।
बोझ लाद वापस चली,
जब हो आई सांझ,
देह नगाड़े सी खिंची,
बजतीं सौ-सौ झांझ।
फिर से चूल्हा फूंक चल,
सबको रोटी सेक,
ऐसे ही बीते सदा,
दिन तेरा प्रत्येक।