अब तो पगले मुस्कुरा
(मनहूसियत के विरुद्ध आड़ी-तिरछी स्थितियां)
तोड़ दे मनहूसियत
मनहूसियत में क्या धरा?
खिल गई बत्तीसियां हैं
अब तो पगले मुस्कुरा।
तेरे साहब और तुझमें
एक मौलिक फ़र्क़ है,
अफ़सरी भाती है उसको
और तुझको अप्सरा।
बाल और नाख़ून तो
बनमानुषों से हो गए,
अब मियां जंगल में जाके
ढूंढ लो इक कंदरा।
लौट कर वनवास से
जब पांव छूने को झुके,
मातु कौशल्या ने
झट आगे बढ़ा दी मंथरा।
संतरी के आख़िरी अल्फ़ाज़ थे
जब बम फटा,
मुफ़्त में भी दे
तो मत लेना किसी से संतरा।
इक टिफ़िन सब्ज़ी का थैला
फ़ाइलों का बोझ ले,
लौट कर दफ़्तर से आया
हो चुका हूं अधमरा।
शायरी करना नहीं है
हर किसी के हाथ में,
सीखनी है तुझको
तो कर चक्रधर से मशवरा।
चक्रधर का मशवरा
लेकिन समझ पाया है कौन
हो सिकंदर या कलंदर
सिरफिरा या मसख़रा।