आज तेरा अंतिम भोजन है
(मौत भी मज़ाक के मौक़े देती है)
जेलर ने कालकोठरी का द्वार खोला,
और फांसी के क़ैदी से बोला—
ये बताना मेरे आने का प्रयोजन है,
कि आज तेरा अंतिम भोजन है।
खाने में कुछ भी कर ले चूज़!
क़ैदी बोला— जी, तरबूज़!
—ओ हो! क्या नाम लीना है,
जानता नहीं है कि फरवरी का महीना है।
अभी मौसम नहीं, धरती नम नहीं
तरबूज़ कहां से लाएं?
—यही होगा अच्छा कि वचन निभाएं!
मैं मौसम का इंतज़ार करूंगा,
बिना तरबूज़ खाए नहीं मरूंगा।
जेलर ने तरबूज़ कोल्डस्टोर से
मंगवाकर कहा कि खा,
और मरने में नखरे मत दिखा।
अब तेरी अंतिम यात्रा का प्रबंध करेंगे,
तू तो एक झटके में मर जाएगा
हम फास्ट फूड खाके धीरे-धीरे मरेंगे।
निराश था क़ैदी,
जेलर ने दिखाई मुस्तैदी।
सारा सामान झटपट लिया,
वध-स्थल तक जाने का शॉर्ट-कट लिया।
क़ैदी की दिलचस्पी नहीं थी तरबूज़ में,
और जेलर साब तर थे बूज़ में।
रास्ता था ऊबड़-खाबड़ और गंदा,
कै़दी को दिख रहा था फांसी का फंदा।
—एक तो इतनी जल्दी मुझे मरवा रहे हैं,
दूसरे इतने घटिया रास्ते से ले जा रहे हैं।
जेलर खा गया ताव,
बोला— नहीं चलेगा तेरा कोई दाव।
तुझे तो बेटा सिर्फ़ जाना ही है,
हमें तो इसी रास्ते वापस आना भी है।