अशोक चक्रधर की प्रतिनिधि लोकप्रिय व्यंग्य कविताएं जब ‘चुनी-चुनाई’ नामक संकलन में नहीं समा पाईं, तब एक दूसरा संकलन तैयार हुआ ‘सोची-समझी’। ‘सोची-समझी’ में वे कविताएं हैं जो स्वयं कवि अशोक चक्रधर को पसंद हैं। ये कविताएं वे मंच पर रुचिपूर्वक सुनाते आ रहे हैं। ‘सोची-समझी’ में पिछले पच्चीस वर्षों में लिखी गई छोटी-बड़ी इक्यावन कविताएं हैं। इन कविताओं को लिखित परम्परा और वाचिक परम्परा की सेतु कविताएं भी कहा जा सकता है। ये पठनीय भी हैं और श्रवणीय भी।
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अशोक चक्रधर की प्रतिनिधि लोकप्रिय व्यंग्य कविताएं जब 'चुनी-चुनाई' नामक संकलन में नहीं समा पाईं, तब एक दूसरा संकलन तैयार हुआ 'सोची-समझी'। 'सोची-समझी' में वे कविताएं हैं जो स्वयं कवि अशोक चक्रधर को पसंद हैं। ये कविताएं वे मंच पर रुचिपूर्वक सुनाते आ रहे हैं। 'सोची-समझी' में पिछले पच्चीस वर्षों में लिखी गई छोटी-बड़ी इक्यावन कविताएं हैं। इन कविताओं को लिखित परम्परा और वाचिक परम्परा की सेतु कविताएं भी कहा जा सकता है। ये पठनीय भी हैं और श्रवणीय भी।... "
अनुक्रम
- पूंछ और मूंछ
- टें बोल दो ना!
- राजकुमार का काला चश्मा
- जंगल-गाथा
- सपनों के राजकुमारों के लिए
- खारा पानी
- बहरे या गहरे
- चालीसवां राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव
- अस्पतालम् खंड-खंड काव्य
- दाना-तिनका
- समंदर की उम्र
- हंसना-रोना
- हंसो और मर जाओ
- फूलों से शर्मिंदा
- लहर डालियां नाचीं क्यों
- बड़ा ख़याल
- सद्भावना गीत
- चिड़िया की उड़ान
- राम राम राम!
- डबवाली शिशुओं के नाम
- परदे हटा के देखो
- गति का कुसूर
- आर-पार
- बग्गा का मग्गा
- शौक़त मियां के पुतले
- पास होने की प्रसन्नता
- बैड नंबर फ़ोर
- फुहारों सी नर्सें
- रस्ते पे आंख
- आपके वास्ते
- नन्हा सा मेमना
- जड़ें और उड़ान
- सोचने की बात
- हम तो करेंगे
- पचास के पांच
- देश की कन्या
- व्हाइट टाइगर
- अप्पन संस्कृति
- चढ़ाई पर रिक्शेवाला
- क्रम
- चेतन जड़
- सपने की विडम्बना
- चमत्कारी ज़ेवर
- कवित्त प्रयोग
- निखिल बनर्जी को सुनते हुए
- सुदूर कामना
- ख़ुद खादी
- अधन्ना सेठ
- और ले लो मज़े
- बूढ़ा पेड़
- कारगिल शहीदों के नाम