‘जो करे सो जोकर’ नया काव्यक संकलन है, जिसमें अशोक जी कहते हैं—‘एक जोकर ही है जो हमेशा रहता है आपका होकर, कुछ भी करता है आपके लिए जो दूसरे नहीं कर सकते वो करता है… ….इसलिए जो करे सो जोकर। खुश होता है पथरीली ज़मीन में बोकर हंसी के दाने। आपकी उपेक्षाओं से कितनी ही बार मुस्कराता है सब कुछ झेलता है रोकर भीतर ही भीतर। आपको बड़ा बनाता है वो अपना इज़्ज़तनुमा खोकर सब कुछ। लगा रहता है लगा ही रहता है कितनी ही ठोकर मारो उसे। वो चेहरे पर चेहरा लगाता है मेहनत करता है हंसाता है। संभ्रांत नाकारा लोग तो आ जाते हैं सिर्फ चेहरा धोकर, इसलिए जो करे सो जोकर। अकर्मण्य नहीं बन सकते जोकर, जो करे सो जोकर’।
इस संकलन में बहुरंगी कविताएं हैं।
पुस्तकें
बलिहारी नायलॉन पूल की! नरेंद्र जी को हां कर दी, पता नहीं सही किया या भूल की। हुआ यों कि सन दो हज़ार दो में डायमंड बुक्स के स्वामी नरेन्द्र कुमार जी के साथ एक अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी के लिए त्रिनिदाद जाना हुआ था। प्रेम जनमेजय ने बड़े प्रेम से बुलाया था। अपनी टिकिट नरेन्द्र जी के साथ ही थी। एयरपोर्ट पर उनके साथ टहले, सीढ़ियों पर उनके साथ चढ़े-उतरे। बाज़ारबाज़ी करी।..."
अनुक्रम
- जो करे सो जोकर
- देख ले
- शावर के नीचे
- दुःखी न होना माणिक भाई
- हालात आ रहे हैं
- क्रोध कितना क़ीमती
- दुख
- जा
- माफ़ करिए
- ऐसे भी क्या
- मैं पीछे-पीछे
- मेरी आंखें
- संचार में
- अंतर्मन और ब्रह्मांड
- जोगी
- क्या इरादा
- चमचा
- रामस्वरूप
- मुक्तक
- मुक्तक
- दोहा
- एक मुखड़ा / गीत पूरा करना है
- यारा प्यारा तेरा गलियारा
- उड़ाकर रंग सारे
- दोस्त
- शिकायत न करना
- बहुत ऊपर
- सपने
- सागर
- मुक्तक
- मुक्तक
- बातें
- पद झंकार
- यमन
- पपुआ
- सुख
- हत्यारा
- रंग महोत्सव
- महाठगिनी की कोमल कव्वाली
- कोमल की महाठगिनी कव्वाली
- मनमोहन ते सोनिया दी हीर
- बहरतबील में मनमोहन की पीर
- अटलजी की मांड
- लालू का आल्हा
- पासवान की नौटंकी
- पप्पू'ज़ तोंद हिलैला
- एंड में पब्लिक की कव्वाली
- जीत का खुमार
- जिंदगी
- मेहनत
- कारोबार
- ग़म
- पति-प्रेमी
- दिल की बात
- आत्मा की आवाज़