चुटपुटकुले अशोक जी की छोटी-छोटी कविताओं का संकलन है, मिकी पटेल के चित्रों से सुसज्जित। यह पुस्तक अशोक जी की अन्य पुस्तकों की तुलना में अपना भिन्न चरित्र रखती है क्योंकि यहां उनके मौलिक व्यंग्य-कथ्य के साथ-साथ लतीफ़ों का इस्तेमाल भी किया गया है। इस तथ्य को वे अपने वक्तव्य में स्वीकार भी करते हैं। उनका मानना है कि लतीफ़े जीवन के रहस्यों को खोलने में सहायक होते हैं- माना कि कम उम्र होते हंसी के बुलबुले हैं, पर जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, ये चुटपुटकुले हैं। चुलबुले लतीफ़े मेरी तुकों में तुले हैं, मुस्काते दांतों की धवलता में धुले हैं, ये कविता की पुट वाले चुटपुटकुले हैं।
लतीफ़ों के बारे में यह कहा जाता है कि वे आते तो सबको हैं पर सुनाना कोई-कोई ही जानता है। अशोक जी ने अपनी तुकों के कौशल से या कहें अपने कविता के पुट से चुटकु ले को चुटपुटकु ला बना दिया है। यही इन कविताओं की मौलिकता है। सारी कविताएं लतीफ़ों पर आधारित हों ऐसा नहीं है। अनेक जीवन-स्थितियों को उन्होंने अपनी निजी विशिष्ट शैली में छोटी-छोटी कविताओं का रूप दिया है जैसे- ठंड के मारे, बेडौल सहेली, चिड़ियाघर ग़लत, ये धुआं सा, बुनियादी सवाल, टें बोल दो ना आदि। बुनियादी सवाल शीर्षक कविता में बच्ची का सवाल छोटा-सा होते हुए भी अनेक व्यापक संदर्भ रखता है।