भोले-भाले अशोक चक्रधर की हास्य-व्यंग्य कविताओं का एक प्रतिनिधि संकलन है। इस पुस्तक को उनकी मंचीय पहचान की पुस्तक भी माना जा सकता है। पुस्तक में प्रकाशित सभी कविताएं न जाने कितने कविसम्मेलनों में, न जाने कितनी बार सुनाई जा चुकी हैं। इसी संकलन की कविताओं का प्रयोग छात्रगण कविता प्रतियोगिताओं में पुरस्कार पाने के लिए करते रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि इन कविताओं को सुन या पढ़कर हंसी नहीं आती लेकिन सभी कविताएं नाम के लिए ही हास्य की हैं। समाप्ति की ओर जाते-जाते वे अचानक ऐसे मानवीय संवेदनात्मक मोड़ पर पहुंच जाती हैं जहां श्रोता या पाठक अभिभूत होकर सामाजिक यथार्थ की किसी-न-किसी विसंगति का तगड़ा झटका खाकर स्तब्ध रह जाता है।
हंसाने का चारा फेंककर गोया ये कविताएं पाठक को फंसाती हैं और फिर अपने उद्देश्य तक ले जाती हैं। कविता धीरे-धीरे उसे समझाने लगती है कि यहां ‘लात की मार से तगड़ी हालात की मार है। डेमोक्रैसी शीर्षक कविता में आज़ादी, समानता और भाईचारे की अलग-अलग व्याख्याएं हैं- ‘और भाईचारा / तो सुनो भाई / यहां हर कोई/ एक-दूसरे के आगे / चारा डालकर / भाईचारा बढ़ा रहा है / जिसके पास डालने को/ चारा नहीं है / उसका किसी से / भाईचारा नहीं है / और अगर वह बेचारा है/ तो इसका हमारे पास / कोई चारा नहीं है।’
चक्रधर की कविता शब्दों का घुमावदार खेल खेलती हुई उपहास-वक्रता का मजा देती-लेती हुई पीड़ा के सघन बिंदुओं में समा जाती है, ठोस ठेस पहुंचाते हुए।
प्रायः कविताओं का शिल्प कथात्मक और वर्णनप्रधान है, इसमें स्थितियों का विन्यास कुछ इस तरह होता है कि समग्र रचना दृश्यात्मक हो जाती है।
‘भोले-भाले’ पुस्तक की दूसरी समानांतर ताकत है इसके सशक्त रेखाचित्र जो प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट मिकी पटेल ने बनाए हैं। जो मानवीय पीड़ा चक्रधर की व्यंग्य कविता में है वैसी ही घनत्वमयी पीड़ा मिकी पटेल के रेखाचित्रों में है।