प्रस्तुत पुस्तक में दस नाटकनुमा कविताएं तथा कवितानुमा नाटक लिखने का एक सफ ल प्रयोग है। ‘रंग जमा लो’ ऐसे एक बहुरंगी फूलों का गुलदस्ता है। अशोक चक्रधर ने अपनी अनोखी सूझ-बूझ तथा विषयानुकूल शिल्प से इन्हें जो रूप दिया है, वह हृदयस्पर्शी है। समस्त नाटिकाओं में काव्य की गूंजें हैं, निश्छल हास्य की फुहारें हैं, व्यंग की तीखी मार है। गीत हैं, नृत्य की थिरकन है। कहीं कठपुतली का कमाल है, तो कहीं पैरोडी की बहार है।
पुस्तक में सभी नाटिकाएं अभिनय-योग्य हैं। सुयोग्य लेखक ने पात्रों व दृश्यों क संयोजन में इस तत्त्व का विशेष ध्यान रखा है। बीच-बीच में नाटिका में कोष्ठकों क अंतर्गत दिए गए संकेत अभिनेयता को पुष्ट कर रहे हैं। ध्वनि एवं प्रकाश के संकेत भी इस स्पष्टता से बताए हैं कि दर्शकों क समक्ष नाटिकाएं सहज रूप से प्रस्तुत की जा सकती हैं। छोटे-छोटे काव्यमयी संवाद कथावस्तु के मर्म को स्पर्श कराने में सक्षम हैं।
लेखक ने सभी नाटिकाओं में भाषा की मिठास एवं उसकी चुटीलेपन को बनाए रखा है। जहां आवश्कता जान पड़ी, वहां आंचलिकता का समावेश कर दिया है। पुस्तक स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ सद्प्रेरणाओं के द्वार खोलती है।