कम उम्र में ही कन्या का विवाह कर देना, हमारे देश की एक बड़ी समस्या है। इसके बहुत सारे घातक परिणाम समाज में दिखाई पड़ते हैं। समय की मांग है कि सभी मिलकर इस कुरीति को दूर करने का संकल्प लें।
एक छोटा-सा गांव था। उसमें रहती थी एक छोटी-सी लड़की- अंगूरी। उम्र होगी लगभग तेरह-चौदह साल की। उसका पिता परमेसरी इतनी कम उम्र में ही उसकी शादी करना चाहता था। अंगूरी आगे और पढ़ना चाहती थी, लेकिन माता-पिता उसकी शादी करने पर आमादा थे। छोटी-सी अंगूरी ने विरोध में बड़ी-सी आवाज़ उठाई। यही इस पुस्तक की कहानी है।
नवसाक्षर पाठकों को कहानी रोचक लगे इसके लिए अशोक जी ने इसमें गीत भी डाले। गीत ऐसे लिखे, जिनकी धुनों से आमतौर पर सभी परिचित हैं, जैसे- ब्रज का रसिया, स्वांग की बहरतबील या कव्वालियां। यानी, इस नाटक को पढ़ें भी, पढ़कर गाते हुए दूसरों को सुनाएं भी और यदि चाहें तो अपनी नाटक-मंडली बनाकर इसका मंचन भी करें।
विगत दस वर्ष में इस नाटक को ‘अंगूरी’ नाम से गीत एवं नाटक प्रभाग, भारत सरकार ने सैकड़ों स्थानों पर प्रस्तुत किया तथा इसी नाटक के आधार पर एन. एफ. डी. सी. एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से ‘बिटिया’ शीर्षक फ़िल्म बनी।