गुरू जी बोले—
सहनशीलता तुम्हारी ताक़त की
सर्वोच्च ऊँचाई है,
और बदले की भावना
तुम्हारी कमज़ोरी की
सबसे गहरी खाई है।
निंदा, निंदा और निंदा,
कुछ लोग उसी से रहते हैं ज़िंदा।
बनाना चाहते हैं तुम्हें परकटा परिंदा,
पर ध्यान रखना आइंदा—
वे तुम्हें लाना चाहते हैं आवेश में,
घेरना चाहते हैं कलुषित क्लेश में!
तुम घिर गए तो जश्न मनेगा
उनके भेजे में,
सीरक पड़ेगी उनके कलेजे में।
अगर तुम गलत नहीं हो
तो उन पर दया करो,
काम आगे नया करो!
—मुझे क्यों बता रहे हैं?
—क्योंकि कुछ लोग मुझे सता रहे हैं।
ध्यान रखना
लोहा गरम हो तो लोग उसे
मनचाहा मोड़ सकते हैं,
कपड़े की तरह मरोड़ सकते हैं।
ताक़तवर होना हो तो
ख़ुद को रखो ठंडा,
हार जाएगा हर हथकंडा।
इतने में कोई पीछे से आया
और गुरू जी को मार गया
ठंडे लोहे का भारी-भरकम डंडा!
मैं चीखा आवेश में,
ये क्या हो रहा है मेरे देश में?