उन्हें कोई रोक नहीं सकता
—चौं रे चम्पू! और सुना, का नई ताजी ऐ तेरे पास?
—चचा, सबसे बड़ी बात जिसने मुझे इस हफ्ते प्रभावित किया, वह थी डॉक्टरों के मना करने के बावजूद नीरज जी का श्रीराम कविसम्मेलन में आधा घंटे के लिए आना। सत्तासी वर्षीय नीरज जी पिछले डेड़-दो वर्ष से काफ़ी बीमार चल रहे हैं।
—का बीमारी ऐ उनैं?
—उनकी बदपरहेज़ी ने तरह-तरह की बीमारियां सहेजी हैं। सबसे बड़ी बात कि चलने में असुविधा है, व्हील-चेयर का सहारा लेना पड़ता है। दो दिन बाद ही उनका ऑपरेशन होना था। डॉक्टरों की सख़्त हिदायत थी कि आप जा नहीं सकते, लेकिन नीरज जी सलाहों की सलाखें तोड़कर आने लगेतो डॉक्टरों ने कहा कि इस शर्त पर जा सकते हैं कि दस मिनट से ज़्यादा आप बैठेंगे नहीं। नीरज जी बच्चों की तरह प्रसन्न हो गए। साढ़े आठ बजे वे आए। सारे श्रोताओं ने खड़े होकर अपने प्यारे कवि का अभिनन्दन किया। उस कवि का लगातार तालियां बजाकर स्वागत किया जिसके दार्शनिकश्रृंगारी और मानवीय अन्दाज़ को वे आज़ादी मिलने से पहले से सराहते आ रहे हैं। इसलिए भी सम्मान किया कि कोई व्यक्ति अपने काव्य-कर्म के प्रति इतना कर्तव्यनिष्ठ है कि इतनी रुग्णावस्था में भी आ गया। रोमांचक क्षण था। सचमुच उनकी हालत अच्छी नहीं थी। शरीर साथ नहीं दे रहा था। व्हील-चेयर से उतार कर जब तक उन्हें माइक के आगे कुर्सी पर नहीं बिठा दिया गया, तालियां बजती रहीं। उनका पहला वाक्य था— मैं चालीस वर्ष से श्रीराम कविसम्मेलन में निरंतर आ रहा हूं ये इकतालीसवां है, आ सकता था तो क्यों नहीं आता भला?
—कित्ती देर कबता सुनाईं?
—लगभग बीस मिनिट काव्य पाठ किया। ग़जब की स्मरणशक्ति है। गले की खनक वैसी की वैसी। बोलने के अन्दाज़ में कहीं कोई कमी-कोताही नहीं। और जब वे अचानक थक गए तो काव्य-पाठ बन्द किया। व्हील-चेयर आई। लोग उन्हें खड़े होकर तालियां बजाकर तब तक विदा देते रहे, जब तककि वे सभागार से निकल नहीं गए।
—जेई तो मौहब्बत ऐ लल्ला! पर चाहत के कछू और ऊ कारन रहे हुंगे।
—हां, और कारण भी हैं चचा! सबसे बड़ा कारण उनका पारदर्शी जीवन। उन्होंने पाप किया, पुण्य किया, किया पूरे मन से। कुछ भी छिपाया नहीं। न अपने पीने का अन्दाज़, न अपने जीने का। दूसरा कारण उस अन्दाज़ के पीछे उनके मानवीय सरोकार। जो उनसे मिलता है, उनका और उनकीसादगी का हो जाता है। सामाजिक निर्धारित मानकों पर नीरज जी भले ही खरे न उतरें पर मनुष्यता के हर मानक पर वे पूरे हैं, क्योंकि वे पूरी मनुष्य-जाति का भला चाहते हैं। वे एक ऐसे मुसाफिर हैं जिसने कभी रुकना नहीं जाना और मुश्किलों में सिर झुकाना नहीं सीखा। मंज़िलें मिलेंगी यानहीं मिलेंगी, इसकी उन्होंने चिंता नहीं की, क्योंकि मंज़िल को वे मानते हैं कि ये सिर्फ़ डगर पर चलने का बहाना है। उन्होंने कहा भी है— ‘मैं अमर पद का न लूं अधिकार, यह सम्भव नहीं है, पंथ की कठिनाइयों से मान लूं हार, यह सम्भव नहीं है।’ जहां गीतों में मांसलता झलकती है, कहीं-कहीं,तो अगले ही पल वे आध्यात्मिक हो जाते हैं। दरसल चचा, उनका जीवन-दर्शन है इंसानियत। वे अपनी कविताओं में इंसानी-विरोधी तत्वों पर ताना मारने से भी नहीं चूकते— ‘क्या करेगा प्यार वह भगवान को, क्या करेगा प्यार वह ईमान को, जन्म लेकर गोद में इंसान की, प्यार कर पाया न जोइंसान को।’
नीरज जी ने सौन्दर्य-दृष्टि के साथ अपनी कर्मठता को बरक़रार रखा।
—सुनिबे वारेन ते बड़ी जल्दी जुड़ जायं नीरज।
—हां, जब श्रोताओं का प्यार उन्हें अपनी ओर खींचता है, तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता। न अस्पताल, न डॉक्टर, न सलाहकार और न नसीहत देने वाले। उनके लिए इससे बड़ा सुख कुछ नहीं है कि वे सुना रहे हों और लोग सुन कर झूम रहे हों। और फिर वे प्रशंसाएं सुनने के लिए भी नहीं रुकते। तत्काल पहुंच गए अस्पताल के बिस्तर पर। मेरे ख़्याल से श्रीराम कविसम्मेलन में आने से उनकी थकान दूर हुई होगी। उनका स्नायु-तंत्र और कुशल हुआ होगा। थोड़ी देर पहले फ़ोन मिलाया था तो पता चला कि ऑपरेशन सफल रहा। अभी अस्पताल में ही हैं। वे दीर्घायु हों, ऐसी कामना करते हैं,चचा!
—आमीन!