तुम भी आदमी मज़ाकिया बड़े हो!
(महानगरीय बसों में आज भी वही हाल है जो तीस साल पहले था)
बड़ी देर के बाद
जब बस आई,
तो सारी भीड़
दरवाज़े की तरफ धाई।
सब कोशिश कर रहे थे
इसलिए
कोई नहीं चढ़ पा रहा था,
और
पीछे खड़े श्रीमान जी को
बड़ा ग़ुस्सा आ रहा था।
बोले—
अरे, क्यों शरमाते हो
लुगाई की तरह,
चढ़ जाओ, चढ़ जाओ
महंगाई की तरह!
श्रीमान जी भी
कैसी बस में चढ़े थे,
जितने लोग बैठे थे
उनसे चौगुने खड़े थे।
कोई चीख़ रहा था
कोई रो रहा था,
इतनी घिचपिच कि
सांस लेना भी
दूभर हो रहा था।
इतने में कंडक्टर बोला—
ए! कहां से बैठे हो?
श्रीमान जी ने कहा—
यार
तुम भी
आदमी मज़ाकिया बड़े हो,
पूछते हो कहां से बैठे हैं
ये नहीं पूछते—
कहां से खड़े हो?