आकाश में सुबह-सुबह
दैनिक निकलने वाले
भास्कर ने कहा—
धरतीवासियो!
वाग्विलासियो!!
निकलो
अंधेरे बंद कमरों से
घुटन भरे दड़बों से
अपने-अपने चैम्बरों से|
मैं कहता हूँ
वसुधैव कुटुम्बकम सोसाइटी के
सारे मेंबरों से—
आओ मैं तुम्हें
धूप की गुनगुनी कविताएं
सुनाऊंगा,
अच्छी लगीं
तो कल भी आऊंगा।
धरती तुम्हारी मां
पूरे ब्रह्मांड में अपराजिता है,
और ये सूरज ही
उसका पिता है।
आओ
मेरी रौशनी और
धूप के हो लो,
मैं तुम्हारा नाना हूं
अपने फोटो-सैल खोलो।
मुझसे नाना प्रकार की
ऊर्जाएं ले लो,
मेरी कविता-किरणों में खेलो।
कहानी पर तो कॉपीराइट
नानी का होता है माना,
पर अब से कविता सुनाएगा
तुम्हारा नाना!