सोचने की बात ये है
(भोग और रोग के इतने निकट हैं लोग, फिर भी….)
जो लोग
सौगंध खाते हैं
मैं अपने खाते में
पहले तो
उन्हें कोसा करता हूं,
फिर उनका
सिर्फ़
नौ-गंध भरोसा करता हूं।
वे अपनी
सज-धज में
तो अनूठे होते हैं।
पर नाइंटी वन परसैंट
झूठे होते हैं।
गंध खाने की नहीं
सूंघने की होती है
फिर भी
सौ गुना करके खाते हैं
और उनके चक्कर में
फूल मारे जाते हैं।
गंध सूंघें या खाएं
भोग तो भोग हैं।
एक्स वाई जैड से
या सैक्स द्वारा
मिसाइल से फैलें
या ऐन्थ्रैक्स द्वारा
रोग तो रोग हैं।
मारत मारत मरें
या इमारत में
अफ़गानिस्तान
अमरीका में मरें
या पाकिस्तान
भारत में
लोग तो लोग हैं।