सर्वकल्याणी व्यंग्य-वाणी
(कुछ लोग व्यंग्य को समझते हैं युद्ध जबकि है वह कुश्ती)
मैंने पूछा—
बताइए कौन सी वाणी है सर्वकल्याणी?
श्रीमान जी बोले—
सर्वकल्याणी होती है व्यंग्यवाणी।
व्यंग्य हितकारी होता है
देश और समाज के लिए,
लेकिन असुविधाजनक होता है
शासन और राज के लिए।
शासन समझता है
व्यंग्य उसके विरुद्ध एक युद्ध है।
क्योंकि उसे लगता है
वही सबसे शुद्ध है।
इस नाते करने लगता है
अपनी धींगामुश्ती,
व्यंग्य युद्ध नहीं है
व्यंग्य है एक कुश्ती।
दोनों में होती है हार-जीत,
कुश्ती एक क्रीड़ा है
युद्ध करता है भयभीत।
युद्ध में जीत तभी मिलती है
जब विपक्षी को पूरी तरह
ध्वस्त, परास्त या दण्डित किया जाय,
कुश्ती में मज़ा तब है
जब दोनों को महिमामंडित किया जाय।
युद्ध की परिणति प्राणांत या जेल है,
कुश्ती एक मेल का खेल है।
युद्ध सपाट होता है,
व्यंग्य में महज़ धोबीपाट होता है।
युद्ध जीवन-मरण का सवाल है,
कुश्ती में सिर्फ जीवन का
जलवा जलाल है।
पद के मद की हद में
शासन करने लगता है मनमर्जी,
एक कार्टून से घबरा कर
ऐसा ही कर रही हैं
आदरणीया ममता बनर्जी।