प्यार होता है तो बस होता है
(अलग अलग एज के लिए अलग अलग होते हैं प्यार के फ़ेज़)
न कहा जाए न रहा जाए,
न सहा जाए ऐसा रस होता है,
प्यार तो जब होता है तो बस होता है।
बस नहीं चलता उस पर किसी का,
यही किताबों में पढ़ा
और अनुभव से सीखा,
कि प्यार है एक क्रेज़,
अलग अलग एज के लिए
अलग अलग फ़ेज़।
जैसे सोलह से चालीस तक के दिन
होते हैं ढुलमुल मीठी सी टीस के,
संपूर्ण प्यार के ठोस दिन आते हैं
बाद में चालीस के।
बीस से चालीस
समझो प्यार एक जिस्म है,
लेकिन उसके बाद के
प्यार की तो अपनी ही क़िस्म है।
चालीस के बाद की उम्र के
प्यार का मतलब है सिर्फ प्यार!
मन के, आत्मा के, प्राणों के,
अंदर के समंदर का ज्वार,
वो भी धूंआधार!
प्यार न तो किसी की सीख से होता है,
न कलैंडर में छपी तारीख़ से होता है।
फूल पंचांग देखकर नहीं खिलता,
भंवरा मुहूर्त निकलवाकर
कली से नहीं मिलता।
जैसे बादल अनायास घुमड़ते हैं
वैसे ही प्यार अनायास उमड़ता है,
और जब उमड़ता है
तो दिल में कलेजे में
कटारी सा गड़ता है।
किसी के रोके नहीं रुकता,
बाद का प्यार होता जाता है
और भी पुख़्ता।