प्रेम जिसे निश्छल मिलता है
(पता नहीं क्या कब मिलता है)
ग़लत किए का
फल मिलता है,
आज नहीं तो
कल मिलता है।
अच्छे किए गए
कामों का,
कहां किसी को
तल मिलता है।
सुख दुख में जो
रहे एक सा,
उसी मित्र से
बल मिलता है।
बंजर से बंजर
धरती में,
नीचे जाकर
जल मिलता है।
बाहर जब
उलझन हों ज़्यादा,
अंदर से ही
हल मिलता है।
प्यास प्रेम की
सघन रहे तो,
दमयंती को
नल मिलता है।
अपने अंदर
झांक सकें हम,
कहां एक भी
पल मिलता है?
वह अमीर है
सबसे ज़्यादा,
प्रेम जिसे
निश्छल मिलता है।