पियक्कड़ जी और डॉक्टर
(समझाने के लिए कभी-कभी समानांतर कुतर्क सहारा देता है)
पियक्कड़ जी मरने पर थे उतारू,
इसलिए डॉक्टर ने बन्द कर दी दारू।
और जब तलब के कारण मरने लगे,
तो डॉक्टर से तर्क करने लगे।
—अगर मैं अंगूर का रस निकालूं
उसे अपने प्याले में डालूं
और पीने का लूं डिसीजन,
तो डॉक्टर साब ऐनी ऑब्जैक्शन?
डॉक्टर बोले— नहीं, नहीं बिलकुल नहीं!
—अगर उसमें थोड़ा सा पानी डालूं
और चम्मच से चला लूं?
—नहीं नहीं फिर भी नहीं!
—अगर उसका ख़मीर उठा लूं,
और गटागट चढ़ा लूं?
डॉक्टर महाशय थे पूरे अक्खड़,
बोले— मिस्टर पियक्कड़!
अगर मैं आव देखूं न ताव देखूं,
और मुट्ठी भर रेत आपके ऊपर फेंकू,
तो रेत शरीर पर फैल जाएगी,
लेकिन क्या चोट आएगी?
—नहीं नहीं बिल्कुल नहीं।
—अगर उसमें थोड़ा सा पानी डालूं
और मिलाकर मारूं?
—नहीं नहीं फिर भी नहीं!
—अगर उस गीली मिट्टी को पका लूं,
और ईंट बना लूं?
पियक्कड़ बोले— कृपा कीजिए,
नहीं पिऊंगा रहने दीजिए।