मिन्नतें कीं बहुत किंतु ख़ाली गईं
(जीवन विडम्बनाओं से भरा है, देखिए कुछ खारे नज़ारे।)
मिन्नतें कीं बहुत
किंतु ख़ाली गईं,
अर्ज़िंयां
सब की सब
यूं ही टाली गईं।
पीर रूठे हुए
क्यों
नज़र आते हैं,
चादरें तो
मज़ारों पे
डाली गईं।
झुनझुना-सा
बजाते थे
बच्चे जिन्हें,
वो सभी
गुल्लकें
तोड़ डाली गईं।
बंद दड़बे में
ज्यों
चुग रहीं मुर्ग़ियां,
लड़कियां भी
इसी भांति
पाली गईं।
हाथ का कौर
बस
हाथ में रह गया,
थालियां
सामने से
हटा ली गईं।
मिन्नतें कीं बहुत
किंतु ख़ाली गईं,
अर्ज़िंयां
सब की सब
यूं ही टाली गईं।