मेरी अंतश्चेतना ने एक बात ग़ौर की
(लोहा जब गर्म हो तभी उस पर चोट करनी चाहिए)
श्रीमानजी ने जब खटखटाया द्वार,
तब बज रहे थे सुबह के चार।
गली का कुत्ता भौंका,
मैं चौंका।
द्वार खोला तो उनके साथ घुसा
दारू का जबर्दस्त झोंका।
बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे,
जाने क्या-क्या बड़बड़ा रहे थे—
डियर, माई डियर!
नाउ लाइन इज़ क्लियर।
मैंने रात में शानदार पार्टी कराई,
बिना आर्थिक संकोच
परमार्थिक स्कॉच की गंगा बहाई।
वे सबके सब परम टुल्ल थे,
अपन परम प्रफुल्ल थे।
मैंने कहा— श्रीमान जी
अब आप आठ-दस घंटे के लिए
चुपचाप सो जाइए,
रंगीन सपनों में खो जाइए।
वे बोले— नहीं, नहीं, नहीं!
दिनभर काम करूंगा यहीं, यहीं, यहीं।
मैंने कहा— काम कर लेना परसों।
वे बोले— नहीं, नहीं, नहीं!
परसों तक तो बीत जाएंगे बरसों।
अटकी हुई हैं बहुत सारी फाइल,
जितने लोग पार्टी में बुलाए थे
सबको मिलाने हैं मोबाइल।
क्योंकि फिलहाल मेरी अंतश्चेतना ने
एक बात ग़ौर की,
आज अगर दिन में
इनसे काम न निकलवाया
तो रात में ये
पी आएंगे किसी और की!!