बिटिया के लिए सच्चा दहेज शिक्षा ही तो है
रोको, रोको!
ये डोली मेरी
कहां चली?
छूटा गांव छूटी गली!
रोक ले बाबुल,
दौड़ के आजा,
बहरे हुए कहार,
अंधे भी हैं ये,
इन्हें न दीखें,
तेरे मेरे
अंसुओं की धार।
रोको, रोको!
ये डोली मेरी
कहां चली?
छूटा गांव छूटी गली!
कपड़े सिलाए
गहने गढ़ाए,
दिए तूने
मखमल थान,
बेच के धरती,
खोल के गैया,
बांधा तूने सब सामान,
दान दहेज
सहेज के सारा,
राह भी दी अनजान,
मील के पत्थर
कैसे बांचूं,
दिया न अक्षर-ज्ञान।
गिरी है
मुझ पर बिजली।
छूटा गांव छूटी गली।
रोको, रोको!
ये डोली मेरी
कहां चली?
छूटा गांव छूटी गली!