मीडिया में दिन-रात अन्ना हज़ारे!
(भारत का संविधान मेरी आस्थाओं की किताब है)
देश देख रहा है नज़ारे,
मीडिया में दिन-रात
अन्ना हज़ारे!
ये नज़ारे देश को करते अधीर हैं,
क्योंकि बेहद गम्भीर हैं।
कौन आक्रामक है?
कौन भयभीत है?
तुम्हारी होगी आधी जीत
लेकिन वंदेमातरम और तिरंगे की
पूरी जीत है।
ये जीत है भ्रष्टाचार के विरोध की,
ये जीत है उबलते हुए क्रोध की।
देश के नौजवानो!
मैं तुम्हारे साथ हूं,
पर क्या करूं
बुद्धि से नहीं अनाथ हूं।
सहमति-असहमति के बीच
मति न बिखर जाय,
देश के विकास की
गति न बिखर जाय।
ध्यान तो रखो
कौन पराया है कौन अपना?
कौन पूरा कर सकता है
मेरा-तुम्हारा सपना?
मैं मानता हूं कि
हर समस्या का समाधान है,
संविधान में भी
संविधान बदलने का प्रावधान है।
भारत का संविधान
मेरी आस्थाओं की किताब है,
उसी आस्था से
मेरे अन्दर भी ताब है।