ममता जी छोडें अपनी ममतानाशाही
—चौं रे चम्पू! एक पैलवान नै बताई कै आजकल्ल तू न्यूज चैनलन पै खूब दिखाई दै रह्यौ ऐ! कौन से पिरोगराम हते?
—चचा, इन दिनों अगर कोई एक मुद्दा किसी चैनल की पकड़ में आ जाय तो फिर सभी चैनल उस मसले पर टॉक शो कराने लगते हैं। मुद्दा चल रहा है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का, प्रसंग ममताबनर्जी, संदर्भ एक कार्टून। तुम्हारे चम्पू को न्यौता मिला। बोलो बेटा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में।
—पूरी बात बता!
—हुआ ये कि ममता बनर्जी के प्रशासन ने एक अध्यापक को आपत्तिजनक कार्टून, मित्र-मण्डली को फॉरवर्ड करने के अपराध में बन्द करा दिया। जादवपुर विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र केप्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा को फेसबुक पर ‘आदरणीय व्यक्तियों’ की तथाकथित आपत्तिजनक तस्वीर जारी करने के लिए गिरफ्तार किया गया। भारतीय दंड विधान की कई धाराओं के अलावा उनके खिलाफ पुलिस ने साइबर अपराध से जुड़े कानून की धाराओं के तहत भी उन्हें लपेट लिया। आदरणीय व्यक्ति यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। बाद में कोलकाता की एक अदालत ने प्रोफेसर को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया। अब मीडिया के लिए मुद्दा ये बना कि इस जनतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या नहीं। कोई ‘आदरणीय व्यक्तियों’ पर व्यंग्य कर सकता है या नहीं। कार्टूनमैंने देखा है चचा। मासूम सा कार्टून है। व्यंग्य को अगर अभिधा में लोगे तो बुरा लगेगा।
चार्ली चैपलिन ने हिटलर की जो पैरौडी की, सारी दुनिया द्वारा सराही गई। पैरौडी को अगर सचाई
मानकरकलाकार-बुद्धिजीवी को दंडित करोगे, बोलती बंद करा दोगे तो क्या कहलाओगे?
—हिटलर…. तानासाह! और का?
—ममता जी के पद का मद अब हद से ज़्यादा ऊपर आ गया है चचा। ममता छोड़ कर वे अपनी क्षमता दिखा रही हैं। माना कि वे ज़मीन से जुड़ी रही हैं और क्रोध करना उनके स्वभाव और व्यक्तित्व का एक अंग बन चुका है। अंग कहना ग़लत होगा, आभूषण बन चुका है। जीवन भर उन्होंने इतना क्रोध और विरोध किया है कि दूसरों के क्रोध या विरोध के लिए जगह ही नहीं बची है।बंगाल में सत्ता में आने से पहले उनकी एक ही रट थी कि चौंतीस साल के वाम शासन में कुछ नहीं हुआ। बंगाल की जनता ने उनके विरोध के समर्थन में स्वर मिलाया। अब वे सत्ता में हैं, तो कोई तोफ़र्क़ आना चाहिए। जनता को डराना चाहती हैं कि अगर कोई उनके विरोध में बोलता है तो उसको कड़ी सजा दी जाएगी।
—अरे लल्ला, राजनीति में नीति कहां है?
—नीति के रूप में संविधान है, उसने आज़ादी दी है बोलने की, तो बोलने दिया जाय। इतिहास से सबक भी नहीं लेतीं दीदी कि जब-जब सर्जकों, कलाकारों, व्यंग्यकारों को किसी शासन द्वारा रोका गया है, उसकी उम्र ज़्यादा नहीं रही। चौंतीस साल तो इनके लिए एक सपना ही होगा। तृण भी उड़ जाएंगे और मूल भी नहीं रहेगी। जनभावनाओं को आदर देना बड़ा ज़रूरी है। आप भय से प्रेम अर्जित नहीं कर सकते। बंगाल में राजनीतिक चेतना दूसरे प्रांतों से कई गुना ज़्यादा है। भयाक्रांत हो सकती है, लेकिन मन में आई भावनाओं को दबाने वाले से कितना दबेगी, यह सोचने की बात है। आपने सबसे ज़्यादा लोकप्रिय अख़बारों की सरकारी ख़रीद पर रोक लगा दी। आपने पुस्तकालयों की पुस्तकों में छंटनी शुरू कर दी। पाठ्यक्रम बदल दिए। कोई हल्का सा, मासूम सा कार्टून भी नहीं पच पा रहा, यह बात समझ में नहीं आती।
—तू कौन सी चैनल पै गयौ ओ?
—दो बार गया एनडीटीवी पर। अभिज्ञान के ‘मुक़ाबला’ कार्यक्रम में तृणमूल की सांसद काकोली, सीपीएम के नीलोत्पल बसु, पत्रकार गौतम लाहिरी, कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग के साथ तुम्हारा चम्पूभी था।
गर्मागर्म बहसें हुईं। परस्पर आरोप-प्रत्यारोप। किस पार्टी के लोगों ने कितनी राजनीतिक हत्याएं कराईं। तुम्हारे चम्पू ने कार्यक्रम के दौरान ही एक कुंडली बना डाली।
—सुना का बनाई?
—मैंने कहा, ’काकोली, गौतम, बसू, अभिज्ञान, तैलंग। डैमोक्रैसी में कभी, नहीं मरेगा व्यंग। बचा रहेगा व्यंग, मरेगी तानाशाही,
ममता जी छोडें अपनी ममतानाशाही। चक्र सुदर्शन कहे, चेतना रहे नपोली, ममता जी की गलती भी मानें काकोली।’
—वा भई वा! ममतानासाही खूब कही!
—नया शब्द गढ़ा है, लेकिन व्याकरणसम्मत है। संस्कृत में मम कहते हैं मेरा या मेरी को।
मम तानाशाही यानी मेरी तानाशाही, यानी ममतानाशाही।