मैं तुझे आंखों से सुनता हूं
(पुरुष अब दिल से कुछ कह रहा है)
देखती है तू कानों से मुझे
पर मैं तुझे आंखों से सुनता हूं,
तेरे चारुत्व के चांचल्य की
चपला को चुनता हूं,
लुभाने के लिए मैं
सौ तरह के जाल बुनता हूं,
ग़लत कुछ बोल जाता हूं
तब अपना शीश धुनता हूं।
उपेक्षा देखकर तेरी
अहं से जीर्ण होता हूं,
सजग शंकालु होकर
सोच में संकीर्ण होता हूं।
पर मैं खड़ा हूं एक ज्वाला पुंज-सा
फैली धरा के ठीक बीचोंबीच
छूता सातवें आकाश का भी
सातवां आकाश लपटों से।
अगर इस आग में है आस्था तेरी
कि बुझने तू नहीं देगी
बढ़ाएगी इसे मिलकर
लपट को चौगुनी ऊंचाइयां देगी,
अगर इस आग में
तुझको सुखद अनुभूतियां हों,
शीत में देती रज़ाई जिस तरह,
या तापने से हाथ
मिलता देह को सुख।
मिले सुख, दुःख न आ पाए
ज़रा भी पास, तो आ!
मैं पुरानी परम्पराओं
अन्याय की श्रृंखलाओं
सड़ी-गड़ी मान्यताओं
ध्रुवहीन धारणाओं को
समापन की
चादर देना चाहता हूं,
और दिल से कह रहा हूं कि
तुझे आदर देना चाहता हूं।