माई री माई! आ गई एफडीआई!!
(बाज़ार में सूराख करने से व्यापार होता है, जो बाज़ी मार ले)
खुदरा परचून दुकान पर कुरेदा मचाते हुए
एक चूहे ने अपनी चुहिया के सामने
रागिनी गाई— माई री माई!
आ गई एफडीआई!!
इस दूकान में जो भी सामान सजा था,
उसमें अपना ख़ूब मौज-मज़ा था।
किसी भी सूराख़ से निकलकर
कहीं भी सूराख़ करते थे,
परिवार का पेट भरते थे।
जितने चाहो खाओ दाने,
जब चाहो लग जाओ बिखराने।
अब ये जो बेचने की विदेशी आर्ट है,
यानी कि वॉलमार्ट है,
वहां अपनी पैठ नहीं हो पाएगी प्यारी,
सुरक्षा की दी जाएगी
बड़ी-बड़ी कम्पनियों को ज़िम्मेदारी।
एक वॉलमार्ट से दूसरी वॉलमार्ट में
नहीं कोई भेद होगा,
किसी दुकान में हमारे लिए
नहीं कोई छेद होगा।
चूहा बिरादरी में
बेरोज़गारी बढ़ जाएगी।
भुखमरी प्राणांतक हो जाएगी।
चुहिया बोली—
नाहक घबराते हो!
समझ नहीं पाते हो!!
विदेशी लोग दुकान ही तो सजाएंगे, माल कहां से लाएंगे?
माल तो ये छोटा व्यापारी ही देगा,
अब कम मुनाफ़े में ही सब्र करेगा।
हां, अपनी ताक़त खोता जाएगा,
छोटा और छोटा होता जाएगा।
शामिल हो जाएगा हमारी ज़मात में,
दिन में या रात में,
वॉलमार्ट में छेद करने के लिए
करेगा फूं-फां हू-हा,
फिर वो भी चूहा हम भी चूहा।