लाइसैंस और साइलैंस
(नेताजी विकास चाहते हैं पर उनके आत्मीय कार्यकर्ता चाहते हैं कुछ और)
उन्होंने कहा चुनाव जीतने के बाद—
धन्यवाद! धन्यवाद! धन्यवाद!
अब देखना इलाके में मेरे प्रयास,
हर तरफ़ होगा विकास ही विकास।
राजा जानी! क्या चाहिए, पानी?
आवाज़ आई— नहीं, नहीं, नहीं।
—रातें भी कर दूंगा उजली।
बोलो क्या चाहिए, बिजली?
आवाज़ आई— नहीं, नहीं, नहीं।
—बोलो बोलो बेधड़क…. सड़क?’
आवाज़ आई— नहीं, नहीं, नहीं।
—मैं बढ़ा दूंगा इलाके की नॉलेज,
कितने स्कूल चाहिए, कितने कॉलिज?
आवाज़ आई— नहीं, नहीं, नहीं।
—तो क्या चाहिए भइया?
मेरे पास है सरकार का करोड़ों रुपइया!
कार्यकर्ता बोले—
न जल, न नल, न सड़क, न स्कूल,
शिक्षा है फिजूल!
नहीं चाहिए बिजली,
चीज चाहिए असली।
—बोलो तो सही मेरे यार।’
कार्यकर्ता एक सुर में चिल्लाए—
हथियार!
रिवाल्वरों के लाइसैंस चाहिए,
थाने में थानेदार की साइलैंस चाहिए,
जो करे वारदातों को अनदेखा,
और हम सबको एक-एक ठेका।
—ज़रूर! ज़रूर! ज़रूर!
लाइसैंस और साइलैंस दोनों मंज़ूर।