कौन नहीं देखता हसीन सपने
(सपने मनुष्यता की पहचान हैं क्योंकि शायद मनुष्य ही समर्थ सपने देखता है)
सपनों के
दाम नहीं
सपनों के
नाम नहीं
सपनों के घोड़ों पर
किसी की लगाम नहीं।
कौन नहीं देखता हसीन सपने?
अपनों के सपने,
सपनों में अपने!
आंगन हो
देहरी हो
कोर्ट हो
कचहरी हो
गहरी हो रात
याकि
भोर हो
दुपहरी हो
सपनों में खोने पर
कोई रोकथाम नहीं।
कौन नहीं देखता हसीन सपने?
अपनों के सपने,
सपनों में अपने!
ताल में
तबेले में
दुनिया के
रेले में
जीवन के मेले
या भीड़ में
अकेले में
सपनों के आने का
कोई तय मुकाम नहीं।
कौन नहीं देखता हसीन सपने?
अपनों के सपने,
सपनों में अपने!