जीवन का ताप अपने आप
(आपसे ज़्यादा पूर्ण और महत्वपूर्ण है जीवन का ताप)
माफ़ करिए!
और कर सकें तो
आंखें साफ करिए।
कारण जो भी रहा हो,
दिमाग ने दिल से
या दिल ने दिमाग से
कुछ भी कहा हो,
कारण ठोस है,
फिलहाल मेरी उंगली पर
ये आपका आंसू नहीं है
नई सुबह की ओस है।
जानता हूं कि
इसमें समाई यादें
आपको बेहद तिलमिलाती हैं,
लेकिन देखिए, देखिए तो…
भविष्य की किरणें भी
यहीं झिलमिलाती हैं।
दुख के पर्वत पर
ठोस जमी हुई सदियां,
पिघल-पिघल बनती रहीं
आंसू की नदियां।
लेकिन रिवर्स कभी भी
रिवर्स नहीं जाती हैं,
दुख-सुख को सुख-दुख को
आगे ले जाती हैं।
संघर्ष की
धूप निकलते ही
यह बूंद भाप बन जाएगी,
और फिर जीवन का ताप
अपने आप बन जाएगी।
मुट्ठी तान लेंगी
आत्माएं भूखी,
लेकिन नदियों का पानी बचाएं,
आंखें रखें सूखी।