जैसे कि इस देह में ख़ून है
(क़ानून एक से एक कठोर हैं, लेकिन, लोकपालन नहीं होगा तो लोकपाल भी क्या कर लेगा?)
जैसे कि इस देह में ख़ून है,
वैसे ही जीवन में क़ानून है।
छोटा बड़ा कोई
अनपढ़ पढ़ा कोई
सबको है एक समान ये।
निर्धन धनी कोई बन्ना बनी कोई
सब पे तनी है कमान ये।
ये हो तो रहता है चैनो-अमन इसकी वजह से ही सुक्कून है।
जैसे कि इस देह में ख़ून है,
वैसे ही जीवन में क़ानून है।
सबकी सुरक्षा का
चीज़ों की रक्षा का
देता है जीवन का ज्ञान ये।
हर गांव रहता है
हर ठांव रहता है
रहता है दुनिया-जहान ये।
हमको बचाता है ये इस तरह
सर्दी में जैसे गरम ऊन है।
जैसे कि इस देह में ख़ून है,
वैसे ही जीवन में क़ानून है।
जीने का रस्ता है
नियमों का बस्ता है
हर मुल्क का मानो प्रान है।
कैसे चलाते हैं, कैसे बनाते हैं
इसके लिए संविधान है।
ये संविधान, होता है क्या?
क़ानूनों का भी ये क़ानून है।
जैसे कि इस देह में ख़ून है,
वैसे ही जीवन में क़ानून है।
दिक़्क़त हमें
आती है तब
हो जाता क़ानून का ख़ून है!!!