इनकी मूल धातु मत पूछ!
(शिक्षक दिवस पर गुरु-चेला संवाद)
पाठशाला में गुरू ने कहा— चेले!
अब थोड़ा सा ध्यान शिक्षा पर भी दे ले।
चल, संस्कृत में ’घोटाला’ अथवा
‘हवाला’ शब्द के रूप सुना।
चेले ने पहले तो कर दिया अनसुना,
पर जब पड़ी गुरू जी की ज़ोरदार संटी,
तो चेले की बोल गई घंटी—
घोटाला, घोटाले, घोटाला:
हवाला, हवाले, हवाला:
हवालां, हवाले, हवाला:
हवालाया, हवालाभ्याम्, हवालाभि:
हवालायै, हवालाभ्याम्, हवालाभ्य:
हवालाया:, हवालाभ्याम्, हवालाभ्य:
हवालात्, हवालाभ्याम्, हवालानाम्
समझ गया गुरू जी समझ गया!
हवाला में जिनका नाम है
हवाला से जिनको लाभ मिला
उन्हें हवालात होगी।
गुरू जी बोले— न कुछ होगा न होगी!
सारी दिशाओं से स्वर आए वाह के,
लेकिन चेला तो रह गया कराह के।
बोला— गुरू जी! हवाला शब्द की
मूल धातु क्या है?
गुरू जी कुपित हुए—
तुझमें न लज्जा है न हया है!
सुन, ये हवाला घोटाला से
सचमुच संबंधित जितने भी जने हैं
तू इनकी मूल धातु पूछता है बेटा,
ये किसी और ही धातु के बने हैं।
हम तो गुरु-शिष्य
ढोल गंवार शूद्र पशु
आम आदमी और वोटर हैं बच्चे,
लेकिन ये हैं देशभक्त सच्चे।
इन्होंने देश को कर दिया छूंछ,
मैं तेरे चरण छूता हूं मेरे शिष्य
तू मुझसे इनकी मूल धातु मत पूछ!