हंसो तो सच्चों जैसी हंसी
(हंसी के बिना ज़िन्दगी में ज़िन्दगी को ढूंढते रह जाओगे)
ऐसी हालत में
कभी मत हंसना
जब केशकर्तक के हाथ में
उस्तरा हो,
या विक्षिप्त के हाथ में छुरा हो।
या तब… जब डॉक्टर को
बिना चश्मे देखने में बाधा हो,
और उसका इंजेक्शन
तुम्हारे शरीर में आधा हो।
हंसी एक छूत का रोग है,
हंसी एक सामूहिक भोग है।
तुम हंसोगे तो तुम्हारे साथ
हंसेगा पूरा ज़माना,
रोओगे तो
अकेले में पडे़गा आंसू बहाना।
मज़ा तो तब है जब
आंसुओं की कहानी भी
हंसी में कह जाओगे,
वरना हंसी के बिना ज़िन्दगी में
ज़िन्दगी को ढूंढते रह जाओगे!
हंसी एक फटे-दिल के लिए
मुहब्बत की पाती है,
पर समस्या यही है कि
कम्बख़्त आती है तो आती है,
नहीं आती है तो नहीं आती है।
हंसो तो सच्चों जैसी हंसी,
हंसो तो बच्चों जैसी हंसी।
इतना हंसो कि तर जाओ
हंसो और मर जाओ।
बात ख़त्म करता हूं इसी पर,
कि हंसते-हंसते मर जाओ
किसी पर!