हाथी पकड़ने का तरीक़ा
(अध्यापकों को प्रणाम जो अद्भुत गुर सिखाकर शिष्यों को कल्पनाशील बनाते हैं)
तोदी जी ने पकड़े जंगल में सौ हाथी,
लगे पूछने उनसे, उनके संगी-साथी—
हमें बताएं, इतने हाथी कैसे पकड़े,
खाई खोदी या फिर ज़ंजीरों में जकड़े?
हाथ फिरा मूंछों पर बोले तोदी भाई—
ना जकड़े, ना घेरे, ना ही खोदी खाई।
लोग समझते, बहुत कठिन है हाथी लाना,
उन्हें घेरना, उन्हें बांधना, उन्हें फंसाना।
पर अपनी तो होती है हर बात निराली,
हमने इनसे अलग एक तरकीब निकाली।
कहा एक ने भैया ज़्यादा मत तरसाओ,
क्या थी वह तरक़ीब ज़रा जल्दी बतलाओ।
तोदी बोले— जल्दी क्या है, सुनो तरीक़ा,
पांच सितम्बर के दिन अध्यापक से सीखा।
चीज़ चाहिए पांच, तुम्हें सच्ची बतलाऊं,
अब पूछोगे क्या-क्या चीज़ें, लो गिनवाऊं!
बोतल, चिमटी, दूरबीन, बोर्ड औ’ खड़िया,
हाथी पकड़ो चाहे जितने बढ़िया-बढ़िया।
इतनी चीज़ें लेकर तुम जंगल में जाओ,
किसी पेड़ की एक डाल पर बोर्ड लगाओ।
‘दो धन दो हैं पांच’ बोर्ड पर इतना लिखकर,
चढ़ो पेड़ पर बाकी सारी चीज़ें लेकर।
झूम-झूमकर झुण्डों में हाथी आएंगे,
‘दो धन दो हैं पांच’ वहां लिक्खा पाएंगे।
अंकगणित की भूल देखकर ख़ूब हंसेंगे,
लिखने वाले की ग़लती पर व्यंग्य कसेंगे।
सूंड़ उठाकर नाचेंगे, मारेंगे ठट्ठे,
ज़रा देर में सौ दो सौ हो जाएं इकट्ठे।
मत हो जाना मस्त, देख इस विकट सीन को,
झट से उलटी ओर पकड़ना दूरबीन को।
सारे हाथी तुम्हें दिखेंगे भुनगे जैसे,
अब बतलाएं उनको तुम पकड़ोगे कैसे!
उठा-उठाकर चिमटी से डालो बोतल में,
समा जाएंगे सारे हाथी पल दो पल में।
ढक्कन में सूराख़ किए हों, भूल न जाना,
अगर घुट गया दम, तो पड़ जाए पछताना।
छेदों से ही कर देना, गन्ने सप्लाई,
बोलो तुमको क्या अच्छी तरक़ीब बताई!!