दरवाज़ों से ना दीवालों से,
घर बनता है घर वालों से!
अच्छा कोई मकां बनाएगा
पैसा भी ख़ूब लगाएगा
पर रहने को नहिं आएगा
तो घर उसका भर जाएगा
सारा मकड़ी के जालों से।
दरवाज़ों से ना दीवालों से,
घर बनता है घर वालों से!
घर में जब कोई न होता है
दादी है और न पोता है
घर अपने नैन भिगोता है
भीतर-ही-भीतर रोता है
घर हंसता बाल-गुपालों से।
दरवाज़ों से ना दीवालों से,
घर बनता है घर वालों से!
तुम रहे भी मगर लड़ाई हो
भाई का दुश्मन भाई हो
ननदी से तनी भौजाई हो
ऐसे में तो राम दुहाई हो
घर घिरा रहेगा सवालों से।
दरवाज़ों से ना दीवालों से,
घर बनता है घर वालों से!
गर प्रेम का ईंट और गारा हो
हर नींव में भाईचारा हो
कंधों का छतों को सहारा हो
दिल खिडक़ी में उजियारा हो
घर गिरे नहीं भूचालों से।
दरवाज़ों से ना दीवालों से,
घर बनता है घर वालों से!