दिशाओं में गूंजती है फेनिल हंसी
(ये हंसी मां और शिशु के बीच संवाद की पूर्वपीठिका है)
पोपला बच्चा
देखता है
कि उसकी मां
उसको हंसाने की
कोशिश कर रही है।
भरपूर कर रही है,
पुरज़ोर कर रही है,
गुलगुली बदन में
हर ओर कर रही है।
तरह तरह के
मुंह बनाती है,
आंखें कभी
चौड़ी करती है
कभी मिचमिचाती है।
उसे उठा कर
चूम लेती है,
गोदी में उठा कर
घूम लेती है।
मां की नादानी को
ग़ौर से
देखता है बच्चा,
फिर कृपापूर्वक
अचानक…..
अपने पोपले मुंह से
फट से हंस देता है।
सोचता है
ख़ूब फंसी
मां भी मुझमें ख़ूब फंसी,
फिर दिशाओं में गूंजती है
फेनिल हंसी।
मां की भी
पोपले बच्चे की भी।