पुण्य ही कर रहा इन दिनों पाप रे!
(ग़ज़ल कहते वक़्त शायर अपने अश’आर की संख्या गिनता है)
शब्द देने लगे शाप रे!
चौबे जी बोले—
बाप रे, बाप रे, बाप रे!
लो कल्लो बात,
ये तो शेर हो गया,
श्रीमानजी बड़बड़ात।
अब लो! शेर नंबर दो—
जो कहीं भी नहीं छप सके,
छाप रे, छाप रे, छाप रे!
दृश्य गमगीन! शेर नंबर तीन—
ये धरा हो रही गोधरा,
कांप रे, कांप रे, कांप रे!
काफ़िया है उदार, शेर नबंर चार—
और कितनी बढ़ीं दूरियां?
नाप रे, नाप रे, नाप रे!
सांच को क्या आंच! शेर नंबर पाँच—
लाल रंग की थी गुजरात में
भाप रे, भाप रे, भाप रे।
इंतेहा तो ये है, शेर नंबर छै—
शख़्स वो जल रहा सामने
ताप रे, ताप रे, ताप रे।
आगे सुनो तात, शेर नंबर सात—
और कितना वो नीचे गिरा,
माप रे, माप रे, माप रे।
क्यों है उनका ठाठ? इस पर लो नंबर आठ—
पुण्य ही कर रहा इन दिनों,
पाप रे, पाप रे, पाप रे।
अब क्यों बनाएं सौ? अंतिम है नंबर नौ—
अब तो कर मित्र सद्भाव का,
जाप रे, जाप रे, जाप रे।